मेरे एक मित्र दिवंगत अभिनेता राजकुमार के रिश्तेदार थे। उन्होंने बताया था कि राजकुमार वास्तविक जीवन में भी अपनी फिल्मी छवि की तरह ही रहते थे। उसी तरह के कपडे़ पहनते, वैसी ही बातें करते थे। और भी कई अभिनेता अपनी स्टार छवि में ऐसे ढले कि उनकी छवि ही बची। उनका अगर कुछ और वास्तविक व्यक्तित्व रहा हो, तो वह उस छवि में समा गया, जैसे कोई आईने में दिखते अपने अक्स में समा जाए। यह छवि का मामला काफी अजीब है, और हर किसी के बस का भी नहीं है। मैंने बड़ी कोशिश की कि मैं कुछ रौबदार, प्रभावशाली आदमी दिखूं, लेकिन मेरा असली फटीचर व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली है कि वह उभर-उभरकर सामने आ जाता है। आखिरकार मैंने हारकर मान लिया कि छवि बनाना अपने बस की बात नहीं है। कई सारे राजनेता होते हैं, जो इस मामले में फिल्मी सितारों से भी आगे होते हैं। वे अपनी छवि में ऐसे समाए होते हैं कि उनके लिए पूरी दुनिया उनकी छवि का आईना होती है। वे देश की किसी गंभीर समस्या के बारे में सोचते हुए यह सोच रहे होते हैं कि इस सोचते हुए दिखने को ज्यादा प्रभावशाली कैसे बनाया जा सकता है? अगर उनके सामने आग लगी हो, तो वे सोचते हैं कि आग बुझाने वे किस एंगल से जाएं कि तस्वीरें प्रभावशाली दिखें। नेता ही नहीं, अफसर भी ऐसे होते हैं, जो अफसर नहीं, अफसर की छवि होते हैं। वे हर वक्त अफसर का अभिनय कर रहे होते हैं। ऐसे ही कई विद्वान हैं, जो दरअसल विद्वान होने की छवि होते हैं। वे हर पल विद्वान दिखते हैं। वैसे ही कई लेखक, लेखक की छवि होते हैं। वे कुछ लिखते हैं, तो उस छवि को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए। ऐसे ही, कई कलाकार हैं, डॉक्टर हैं, वैज्ञानिक हैं, कई सारे धर्मगुरु हैं, जो अपने-अपने कारोबार की छवियां हैं। और ये सब छवियां एक-दूसरे के साथ अभिनय कर रही होती हैं। तभी तो शेक्सपीयर ने लिखा है- यह दुनिया एक रंगमंच है और सारे स्त्री-पुरुष अभिनेता हैं।
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